tag:blogger.com,1999:blog-605496575635527861.post8704787232687982625..comments2015-09-17T04:13:28.920-07:00Comments on कथा सरित सागर: शहीदpadma raihttp://www.blogger.com/profile/10612144580425549034noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-605496575635527861.post-49145768980471635752008-08-18T11:19:00.000-07:002008-08-18T11:19:00.000-07:00मार्मिक!!!मार्मिक!!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-605496575635527861.post-28233360550521249582008-08-18T09:28:00.000-07:002008-08-18T09:28:00.000-07:00"वह सोच रही थी कि उसने ये सारी बातें कब कहीं थीं ?..."वह सोच रही थी कि उसने ये सारी बातें कब कहीं थीं ? उसे कुछ याद नहीं था. उस समय तो शहीद शब्द का ध्यान उसे एक बार भी नहीं आया था. फिर इस तरह की बातें किसने कहीं ? गर्व की अनुभूति का तो पता नहीं हां कलेजा जरूर उसका अभी भी लगता है जैसे फट पडेगा. जब- तब एक ही बात दिमाग में हलचल मचाये रह्ती है कि अब वह लाख कोशिशों के बावजूद भी अपने बेटे से कभी भी मिल नहीं पायेगी. शहीद बेटे की माँ कहलवाने की उसकी इच्छा कब थी ! उसकी बस एक ही चाहत थी कि उसका बेटा लडाई के मैदान से विजयी होकर वापस लौटे." इसी कहानी से . आपने कितना सही कहा है . दुनियां की कोई भी मां अपने बेटे को युद्ध के मैदान से विजयी होकर लौटने की ही कामना करेगी. आपको इतनी बढिया कहानी लिखने के लिये बधाई.<BR/><BR/>सन्युक्ताAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-605496575635527861.post-47033838763920037252008-08-18T06:35:00.000-07:002008-08-18T06:35:00.000-07:00बहुत ही मार्मिक.आंसू निकल गए पढ़ते-पढ़ते.बहुत ही मार्मिक.<BR/>आंसू निकल गए पढ़ते-पढ़ते.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-605496575635527861.post-75122384110673701512008-08-18T06:33:00.000-07:002008-08-18T06:33:00.000-07:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.com