रविवार, 10 अगस्त 2008

विनयना

स्कूल नजदीक आ चुका है. जाने कब के नौ बज चुकें हैं. कितनी भी जल्दी कर लो किंतु रोज सवा नौ-साढे नौ तो हो ही जातें हैं. भागते हुये गेट से अन्दर घुसी . मुझे जिस क्लास मे पहुँचना है, वह क्लास रूम अन्दर की तरफ- आंगन के दूसरे छोर में है. हमेशा की तरह रास्ते में कई बच्चे-कुछ अपने हाथ से व्हील चेयर को ढकेलते हुये तो कुछ के साथ कोई टीचर या वालंटियर है (उनकी मदद करने के लिये)-अपनी अपनी क्लास की तरफ जाते हुये दिखाई दिये. लगता है अभी ज्यादा देर नहीं हुई थी .
मेरा क्लास रूम सामने था. मैंने देखा , सभी बच्चे ब्रेकफास्ट कर रहे थे.
"गुड मार्निंग एवरी बाडी." कहकर मैं मुस्कुरायी.
तानिश को देखकर हँसी आनी ही थी. वह अपने टिफिन बॉक्स पर झुका हुआ बडे चाव से अपना खाना खा रहा था. आज ही नहीं वह हमेशा ऐसे ही मगन होकर खाता है. उसको इस तरह स्वाद लेकर खाते हुये देखकर सचमुच मेरा भी मन उसका खाना खाने का करने लगता है. उसकी ममा बडे चाव से उसका टिफिन पैक करती है. उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि उनका बेटा खाने का बहुत शौकीन है इसलिए हर दिन कुछ अलग बनाकर उसके लिये भेजती है. तानिश का पूरा ध्यान अपने लंच बॉक्स की तरफ ही है बावजूद इसके सबसे पहले उसने मुझे देखा. उसके हाथ में पैटीस का एक टुकडा था. मुँह में पैटीस लगभग ठूँसते हुये उसने कहा- " गुड मॉर्निंग दीदी."
उसकी आवाज सुनकर बाकी बच्चों को भी याद आया कि वे मुझे विश करना भूल गये थे. सबने मेरी तरफ देखकर शर्माते हुये कहा- "गुड मॉर्निंग पद्मा दीदी."
"हैलो .पद्मा."
मैंने पीछे मुडकर देखा . अमित थी , हमेशा की तरह लगभग भागते हुये क्लास में घुसी . वह फिजियोथेरेपिस्ट है और हमेशा जल्दी में रहती है.
"कैसीं हैं?"
"मैं ठीक हूँ."
"हैलो पद्मा दी," अंजना की आवाज आलमारी की तरफ से आयी-
"मैं सोच ही रही थी कि आज पता नहीं आप आयेंगी भी या नहीं !"
कहते हुये उसने आलमारी बन्द कर दी . उसके हाथ में कैंडल और माचिस थी. प्रेयर की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी.
"आप आ गयीं हैं देखकर अच्छा लग रहा है. पता नहीं क्यों हर दिन हम सबको आपका इंतजार रहता है." अपनी कुर्सी खीचते हुये उसने कहा.
उसकी इस बात का मैं क्या जवाब दूँ , समझ में नहीं आ रहा था . मेरे पास कुछ कहने को था भी नहीं. मैं केवल मुस्कुरा देतीं हूँ. अंजना इन बच्चों की क्लास टीचर है. उसका सारा काम व्यवस्थित और समय से होना ही है. जरा भी इधर उधर नहीं. बच्चे खा चुकें हैं. उनकी तरफ देखकर बोली-
"अच्छा बच्चों ! अब ब्रेकफास्ट ओवर, प्रेयर के लिये सब तैयार हो जाओ ."
अब मेरा काम भी आरम्भ हो गया था. मैंने बारी-बारी सबके खाली लंच बॉक्स बन्द करके उनके बैग के अन्दर रख दिये हैं. नैपकिन से अबके मुँह–हाथ पोंछ दिये हैं. सभी बच्चे प्रेयर के लिये तैयार हो चुकें हैं. मैंने भी एक कुर्सी आगे खींच ली और उस पर बैठ गयी. सामने की दीवार पर एक चार्ट जिसमें अँग्रेजी में एक से दस तक गिनती बडी ही खूबसूरती से लिखा हुआ है- टँगा है.
तैयारी पूरी हो चुकी है . मेज के बीचोबीच मोमबत्ती जल रही थी. बच्चे अपनी–अपनी कुर्सियो में बंधे मेज के चारों तरफ चुपचाप बैठें हैं .अंजना की तरफ सभी बडे ध्यान से देख रहें हैं .
अंजना दीदी बोलीं–
" अब सभी अपनी-अपनी आँखें बन्द करके हाथ जोड लें ."
बच्चों ने अपनी आँखें बन्द करने की हर संभव कोशिश आरम्भ कर दी . तानिश को जरूर कुछ मुश्किल हो रही थी .बार -बार आँखें भींचकर उन्हें बन्द करने की कोशिश करने के बावजूद उसकी आँखें खुल जा रहीं हैं. एक आँख दबाकर और दूसरी खोलकर वह कभी कभी चुपके से सबको देखता है और जब पाता है कि सबकी आँखें बन्द हैं तब झट से अपनी आँखें बन्द कर लेता है .बहुत मेहनत करनी पड रही है. बेहद कठिन कार्य है, लेकिन क्या करे, करना तो होगा ही . न चाहने के बावजूद बार-बार तानिश की आँखे खुलना गलत है - इसका अहसास तानिश को है इसलिये गलती होने के बाद वह अक्सर क्षमा याचना की मुद्रा में अंजना दीदी की तरफ देखता है लेकिन वह ऐसे बैठी रहतीं जैसे उन्होंने कुछ देखा ही नहीं .
मीनू ने अपनी आँखें तो बन्द कर लीं हैं अच्छी तरह से किंतु उसके हाथ उसकी बात मानने के लिये तैयार नहीं . एक साथ दोनो हाथ जुडने की मुद्रा में आ ही नहीं पा रहें हैं लाख प्रयास करने के बावजूद एक हाथ दूसरे से दूर भाग जाता है . मुश्किल में है मीनू किंतु कोशिश जारी है .
विनयना अद्भुत है, हर कार्य बडी ही तन्मयता से करने की कोशिश करते हुये, उसे हमेशा ही देखा है मैंने . आई क्यू लेवेल काफी हाई, पर अक्सर लाख कोशिशों के बावजूद असफल रह जाने पर मैने कई बार उसकी आँखों में आँसू लहराते हुये देखा है. उसका शरीर उसके अपने ही दिमाग का आदेश मानने से इंकार करता है .फिर भी वह बहादुरी के साथ अपनी लडाई लड रही है. मैं अपने दोनों हाथ जोड कर विनयना की कुर्सी के पीछे आँख बन्द किये खडी हूँ .
अंजना दी की प्रेयर शुरु हो चुकी है.
"ओम... ओम...ओम..लोका समस्ता, सुखिनो भवंतु .ओम ....शांति... शांति...शांति." प्रेयर समाप्त हो गयी है . "अब धीरे धीरे सभी बच्चे अपने दोनो हाथों को एक दूसरे से रगड कर आँखों के पास ले जायेंगे और फिर अपनी आँखों को धीरे धीरे खोलेंगे ." अंजना दी स्वयं भी ऐसा ही करते हुये बच्चों से कह रहीं थीं .
ज्यादातर बच्चे जो पहले ही अपनी आँखें खोल कर बैठे थे अंजना दी की बात सुनकर उन्होंने झट से अपनी आँखें बन्द कर लीं हैं और उनकी नकल करने में जुट गयें हैं . मुझे हँसी आ रही है. बमुस्किल अपनी हँसी रोककर उनकी कोशिशों को चुपचाप देख रहीं हूँ .
अंजना से कुच भी नहीं छिपा किंतु वे गम्भीर हैं बच्चों को नहीं पता कि अंजना दी ने उन्हें आँखें खोले देखा है . बच्चों के सामने अंजना अक्सर गम्भीर ही रहती है .
"हाँ तो बताओ त, तुममें से आज कैंडल कौन बुझायेगा ?".
"मैं दीदी..." मैं दीदी.." कई आवाजें एक साथ मुझे सुनाई दे रहीं हैं. बच्चों की निगाहें मेरी तरफ हैं . निर्णय मुझे लेना है .
" आज तो विनयना की बारी है ." मैंने अंजना की तरफ देखते हुये कहा
विनयना बहुत खुश है . अंजना ने धीरे से कैंडल को उठाया और उसके करीब पहुँचा दिया .
" मैं कल बुझाऊँगा, न...दीदी !" साहिल ने बडी उम्मीद से मुझे देखा.
"हाँ ..साहिल कल तुम्हारी ही बारी है ." मैने उसके बाल सहलाते हुये कहा .
अब पूरी क्लास का ध्यान विनयना की तरफ . मैं उसके बगल में रखी हुयी कुर्सी पर बैठ गयी .
"अफ्फू...अफ्फू...अफ्फू..." जी जान से जुटी है विनयना .उसका जॉ मूवमेंट प्रापेर नहीं है .
मुझे बेचैनी होने लगी .और तभी अचानक जैसे मुझे कुछ हुआ.
अभी विनयना की कोशिश जारी ही थी कि अनजाने में मैंने भी ठीक उसी समय फू किया जब विनयना ने अफ्फू किया था, कैंडल की लौ तेजी से लहराई और फिर ...एक पतली सी धुएँ की लकीर में परिवर्तित हो गयी.
अंजना मेरी तरफ देखकर हल्के से मुस्कुरायी . बच्चों ने कुछ नहीं देखा . वे जोर जोर से ताली बजा रहें हैं . सब खुश हैं . विनयना ने आज पहली बार कैंडल जो बुझायी है .
"वेरी गुड विनयना ," अंजना दी के कहते ही उसकी निर्दोष आँखों की चमक दुगनी हो गयी .
आज पूरे दिन मैं मगन हूँ .बार-बार उसकी आँखों की चमक मेरी नजरों के सामने कौंध जा रही है . मेरी खुशी छिपाये नहीं छिप रही .दिन भर में कई लोग मुझसे पूछ चुके कि आखिर मेरे इतना खुश होने के पीछे कौन सा राज छिपा है . पता नहीं क्यों, बडे से बडा काम करके भी शायद मुझे कभी इतना सौख नहीं मिल पाया है जितना आज अनजाने मेँ किया हुआ यह 'फू...' दे गया है .

साभार (वर्तमान साहित्य)
पद्मा राय.

2 टिप्‍पणियां:

Manish Kumar ने कहा…

सुंदर ! दिल को छू लिया इस फू.. ने

Udan Tashtari ने कहा…

स्वागत है हिन्दी ब्लागजगत में इस बेहतरीन कहानी के साथ. नियमित लिखें, शुभकामनाऐं.

कृपा वर्ड वेरिफिकेशन हटा लेवे.. टिप्पणी देने में सुविधा होगी