मंगलवार, 19 अगस्त 2008

बहादुरी ( लघु कथा)

दस दिनों से शहर, कर्फ्यू से पस्त हिम्मत था. इतंने दिनों के बाद आज पहली बार कर्फ्यू में दो घंटे की ढील दी गयी है. कोतवाल साब की आंखें मूंदी जा रहीं थीं .दस दिनों से वे ठीक से सो नहीं पाये थे, आज थोडी देर के लिये जरा पीठ सीधी करने की इच्छा थी लेकिन अब शायद वह इच्छा पूरी न हो पाये .इसलिये वे बहुत क्रोधित हो गयें हैं . अभी-अभी हवलदार एक लडके को गर्दन से पकड कर थाने में ले आया है. उसके चेहरे से पता चल रहा था कि रास्ते में हवलदार साहब की लाठी से उसकी अच्छी खासी पीठ पूजा हो चुकी है . कोतवाल साब ने आव देखा न ताब , न कुछ पूछा न जाँचा बस बेंत उठायी और उस लडके की पीठ पर धर दिया.
"अरे माई....... रे..." लडके की चीख निकली.
"क्यों बे, तेरा नाम क्या है ?" दारोगा साब दहाडे .
लडका थर थर काँपने लगा. आवाज लडखडाने लगी . कन्धे नीचे की ओर झुकने लगे . और आंखें बेंत पर चिपक गयीं . दिसम्बर के महीने में वह पसीने से तरबतर हो चुका था. पुलिस के दारोगा से उसका पहली बार साबका पडा था.

"जी, जी स्वर्ण सिंह ." नाम ध्यान से सुना दारोगा जी ने .कुछ सोचा और समझा, लडका हिन्दू है. भोले-भाले चेहरे पर डर का घना साया देखकर उन्हें उस पर दया आने लगी.
"तुम उसे पहले से जानते थे ?" कोतवाल साहब ने थोडा मुलायमियत से पूछा.
"जी...जी नहीं." लडके के कन्धे का झुकाव थोडा कम हुआ.
कोतवाल साब झुंझलाये. न जाने कहाँ-कहाँ से उठा लातें हैं ससुरे .हवलदार को जरूर गलतफहमी हुयी है .
"अरे भाई, ये किसे पकड लायें हैं आप ?" उनका इशारा हवलदार की तरफ था.
"जी सर , इसी लडके ने उसको छूरा भोंका था.. हमने मौके से ही इसे गिरफ्तार किया है साहब !" घिघिया रहे थे हवलदार साहब .
"हूं ........." उनकी 'हूं' साफ बता रही थी कि उन्हें हवलदार साहब की बात पर भरोसा नहीं हो रहा था.
" तुम्हारा नाम स्वर्ण सिंह है ? यही बताया था न तुमने अपना नाम ?"
"जी साब ."
"उस अभागे इंसान पर तुमने छूरा चलाया था ?"
"जी हां, जी नहीं, जी साब ." कहते-कहते लडका जो थोडा झुका था तनकर सीधा खडा हो गया. उसका सीना चौडा होने लगा.
"क्या जी-जी लगा रखी है ? क्या उसने तुम्हारे ऊपर हमला किया था - जिससे बचने के लिये तुमने छूरा उठाया ?" दारोगा जी कारण तलाशने में लगे थे.
"अरे नहीं साब ." लडका अब कभी-कभी मुस्कुराता भी था.
"तुमसे उसकी कोई दुश्मनी भी नहीं हो सकती क्योंकि अभी तुमने बताया कि तुम उसे पहले से नहीं जानते थे .." कोतवाल साब पूछ रहे थे लडके से, लेकिने उन्हें देखकर कोई भी यही समझता कि वे अपने आप से बातें कर रहें हैं.
'जी..जी.." लडके ने तेजी से अपना सिर दांयें बांयें हिलाया. दारोगा जी के मधुर व्यवहार पर उसे आश्चर्य हो रहा था. उसने तो उनके बारे में कुछ और ही सुना था.
दरोगा जी ने तह तक जाने का एक और प्रयास किया-
"उस समय वह आदमी क्या कर रहा था ? क्या वह कोई गलत हरकत कर रहा था ?"
"जी , वह सिर झुकाये हुये मेरी तरफ भागता हुआ आ रहा था और बदहवास था." लडका सच बोल रहा था.
" क्या वह तुम्हें मारने आ रहा था ?"
"अरे नहीं साब."
"हुं......, तुमने तब ऐसा क्या देखा उसके हाव भाव में कि उस पर हमला बोल दिया ?"
कोतवाल साहब थके हुये यो पहले से थे . अब उनकी आवाज भी थकी थकी लगने लगी. लडके ने भी इस बात को मह्सूस किया . वह अब मुस्कुराने लगा था. उसने आहिस्ता-आहिस्ता इस तरह बोलना आरम्भ किया जैसे किसी गहरे रहस्य पर से परदा उठाने जा रहा हो .
"जी ,साब ये ससुरे होतें ही इसी काबिल हैं . आप नहीं जानते इन्हें . इन साले मुसल्लों के दिल में हम हिन्दुओं की तरह मोह ,माया तो होती नहीं . ये अपने सगे बाप, भाई के तो होते नहीं . आपने देखा नहीं , ये लोग बकरे को भी किस तरह तडपा-तडपा कर मारतें हैं . ये बहुत खतरनाक कौम है साब . हम हिन्दुओं को तो आप जानतें हैं साब , चींटी को भी आटा खिलातें हैं . आखिर ऊपर जाकर भगवान को भी तो एक दिन जवाब देना है कि नहीं !"
"छूरा किसने चलाया था ?" दारोगा जी ने गदगद होकर फिर पूछा.
"जी साब, मैंने." गर्व से उसने वही पुराना जवाब एक बार फिर दोहराया. स्वर्ण सिंह नाम का यह लडका अपनी बहादुरी से अभिभूत था.
कोतवाल साहब भी उससे सहमत दिखे. उन्हें अपने सामने अपराधी नहीं बल्कि एक बेहद समझदार और बहादुर हिन्दु नौजवान खडा दिखाई देने लगा. वे अपनी कुर्सी पर उठंग कर आराम से बैठ गये और अपनी गर्दन ढीली छोड दी . उन्होने अपने सामने खडे होनहार लडके को ध्यान से देखते हुये अपने लोगों से कहा, "इस लडके को चाय-वाय पिलाकर छोड दीजियेगा आप लोग . कुछ तो अपने दिमाग का इस्तेमाल किया करिये. बिना सोचे समझे बेमतलब ऐक्टिव हो जातें हैं आप सब और किसी को भी धर लातें हैं . दो घंटे का समय बिना मतलब बरबाद हो गया.

पद्मा राय

10 टिप्‍पणियां:

आलोक साहिल ने कहा…

बेहतरीन,बेहतरीन,बधाई जी
आलोक सिंह "साहिल"

Asha Joglekar ने कहा…

bahut badhiya.

Amit K Sagar ने कहा…

बहुत खूब. आभार.

Advocate Rashmi saurana ने कहा…

bhut badhiya katha. chithajagat me aapka swagat hai. niyamit lekhan ke liye meri shubhakamnaye.

बेनामी ने कहा…

कथा सिंथेटिक है।

dinesh kandpal ने कहा…

ब्लाग परिवार में.. स्वागत है आपका

شہروز ने कहा…

antar-janjaal mein aapka swagat hai.post saarthak hai, apne alag arth mein.
kabhi moqa mile to idhar zarur aayen:
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/

बेनामी ने कहा…

बुरे फंसे बिचारे दारोगा जी !

कविता

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

बहुत खूब. बेहतरीन बधाई

बेनामी ने कहा…

yeh chtoti si kahani man ko udwelit kar deti hai,
purvagrahon se bane is samaj me identity making kaise hoti hai,yeh is kahani se spast hota hai aur isme kitne aur kin mithkon ka pryayog kiya jata hai yah bhi dekhne layak hai.
kahani chote swarup me hi bade vimarsh ko janm de rahi hai yehi academic kahani ki visheshta hai. bahut achchi lagi.